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Tuesday, December 27, 2011

अथर्ववेद को पढने से ऐसा पता लगता है कि वेद्कार विवाहित जीवन से तंग थे. उन्होंने बताया है कि अगर पत्नी प्रेम न करे उसके साथ कैसा बर्ताव करें. दूसरों की पत्नी को अपने वश में किस प्रकार करना चाहिए. जादू-टोनों का वर्णन खूब किया गया है. वास्तव में देखा जाए तो वेद जैसे "अपौरुषयै" पुस्तकों में इन बातों का वर्णन करने की क्या आवश्यकता थी?- डॉ. बी आर अम्बेडकर (२४ नवम्बर , १९४४ पुणे में गीता पर भाषण देते हुए)

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